श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’
( श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू, हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है एक लघुकथा “टूटते मकान ”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 5 ☆
☆ लघुकथा – टूटते मकान ☆
अभी-अभी नजूल की जमीन सरकार ने खाली करवानी शुरू की. यह तो अच्छा हुआ कि पहले नोटिस और समय देकर फिर मकान तोड़े जा रहे थे.
पहाड़ी पर बने मकानों को पूरी तरह से पहाड़ ही रहना है सुन्दरता को बरकरार रखने हेतु यह कार्य किया जा रहा था.
बहुत समय पहले हमारा मकान बनाने आये कुछ मजदूरों में एक सुखिया भी आई थी. सुन्दर, धीमी आवाज, उसका मधुर स्वभाव और काम जी तोड़कर करना. ईमानदारी भी कूट कूटकर भरी थी.उसका यह स्वभाव हम सभी को बहुत पसंद आया था. मकान तैयार होने पर काम खतम हुआ तो उसने घर पर काम करने की इच्छा जाहिर की. हमने उसे रख लिया. वह बहुत खुश होकर काम करती. पति ईंट गारा का काम और सुखिया घर-घर जाकर बर्तन पोंछा करती थी.
आज अभी-अभी दोनों पति-पत्नी हमारे घर आये और बड़े दुखी स्वर में बताने लगे “बाई जी बड़ी मेहनत मजदूरी से घर का सामान बनाया है. बोल्डर चलवा रहे हैं. हम कहाँ जायें बाईजी गाँव छोड़कर काम की तलाश में इहाँ आ गये. फ्रिज, कूलर, अलमारी पेट काट, काटकर बनाये हैं. हम सभी को उन पर दया आई. पहमने उनसे कहा. हमारे एक कमरे में अपना सभी सामान रख लो. जब तक सरकार तुम्हारा पूरी तरह रहने-खाने का इन्तजाम नहीं कर देती तुम यहीं रहो और काम करते रहो. जब तुम्हारा घर बन जाये तब कमरा खाली कर देना. इतना सुनते ही उन दोनों की आँखे भर आईं थी. वे हमें पल भर के लिए इतनी पवित्र लगी कि जैसे यह हमारे किये अच्छे काम का फल था या भ्रम…. उस समय इतनी पवित्र, प्यार और अहसान मंद थी आँखे कि हम सभी भावुक हो गये. मैने कमरे की चाबी दी सुखिया की आँखों से खुशियाँ झलकने लगी थी. इतमीनान था, शान्ति थी. शायद यह उसकी अच्छाई का नतीजा था.
© श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि ‘
अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश