श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
अध्याय 18
( श्रीगीताजी का माहात्म्य )
य इमं परमं गुह्यं मद्भक्तेष्वभिधास्यति ।
भक्तिं मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशयः ॥
जो मुझमें अनुरक्त जन , को देगा यह ज्ञान
वह पा मेरी भक्ति, आ मिलेगा मुझे निदान ।।68।।
भावार्थ : जो पुरुष मुझमें परम प्रेम करके इस परम रहस्ययुक्त गीताशास्त्र को मेरे भक्तों में कहेगा, वह मुझको ही प्राप्त होगा- इसमें कोई संदेह नहीं है॥68॥
He who with supreme devotion to Me will teach this supreme secret to My devotees, shall doubtless come to Me.
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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