श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
अध्याय 18
( श्रीगीताजी का माहात्म्य )
यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः ।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ॥
जहाँ योगेश्वर कृष्ण हैं तथा धनुर्धर पार्थ
विजय सुनिष्चत वहाँ ही, मेरी मति निस्वार्थ। ।।78।।
भावार्थ : हे राजन! जहाँ योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण हैं और जहाँ गाण्डीव-धनुषधारी अर्जुन है, वहीं पर श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है- ऐसा मेरा मत है॥78॥
Wherever there is Krishna, the Lord of Yoga, wherever there is Arjuna, the archer, there are prosperity, happiness, victory and firm policy; such is my conviction.
ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे मोक्षसन्न्यासयोगो नामाष्टादशोऽध्यायः॥18॥
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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