श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
दैवासुर संपद्विभाग योग
(आसुरी संपदा वालों के लक्षण और उनकी अधोगति का कथन)
अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः।
मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः।।18।।
अंहकार मद क्रोधवश करते प्रभु से द्वेष
निंदा करते सभी की, खुद को समझ विशेष।।18।।
भावार्थ : वे अहंकार, बल, घमण्ड, कामना और क्रोधादि के परायण और दूसरों की निन्दा करने वाले पुरुष अपने और दूसरों के शरीर में स्थित मुझ अन्तर्यामी से द्वेष करने वाले होते हैं॥18॥
Given over to egoism, power, haughtiness, lust and anger, these malicious people hate me in their own bodies and those of others.।।18।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८