श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
अध्याय १७
(आहार, यज्ञ, तप और दान के पृथक-पृथक भेद)
मूढग्राहेणात्मनो यत्पीडया क्रियते तपः।
परस्योत्सादनार्थं वा तत्तामसमुदाहृतम् ।।19।।
किसी मोह के भाव से, जनहित को नुकसान
पहुँचाने होता जो तप, तामस की पहचान।।19।।
भावार्थ : जो तप मूढ़तापूर्वक हठ से, मन, वाणी और शरीर की पीड़ा के सहित अथवा दूसरे का अनिष्ट करने के लिए किया जाता है- वह तप तामस कहा गया है ।।19।।
The austerity which is practised out of a foolish notion, with self-torture, or for the purpose of destroying another, is declared to be Tamasic. ।।19।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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