श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
अध्याय 18
(सन्यास योग)
न द्वेष्ट्यकुशलं कर्म कुशले नानुषज्जते ।
त्यागी सत्त्वसमाविष्टो मेधावी छिन्नसंशयः ।।10।।
सत्व युक्त निश्शक मन, त्यागी जो विद्वान
किसी कर्म से द्वेष न, किसी में न रममान ।।10।।
भावार्थ : जो मनुष्य अकुशल कर्म से तो द्वेष नहीं करता और कुशल कर्म में आसक्त नहीं होता- वह शुद्ध सत्त्वगुण से युक्त पुरुष संशयरहित, बुद्धिमान और सच्चा त्यागी है ।।10।।
The man of renunciation, pervaded by purity, intelligent and with his doubts cut as under, does not hate a disagreeable work nor is he attached to an agreeable one.।।10।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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