श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अध्याय 18  

(सन्यास   योग)

अनिष्टमिष्टं मिश्रं च त्रिविधं कर्मणः फलम्‌ ।

भवत्यत्यागिनां प्रेत्य न तु सन्न्यासिनां क्वचित्‌ ।।12।।

इष्ट, अनिष्ट या मिश्रफल पाने जिनको चाह

किंतु कर्मफल त्याग की कभी न कोई परवाह।।12।।

 

भावार्थ :  कर्मफल का त्याग न करने वाले मनुष्यों के कर्मों का तो अच्छा, बुरा और मिला हुआ- ऐसे तीन प्रकार का फल मरने के पश्चात अवश्य होता है, किन्तु कर्मफल का त्याग कर देने वाले मनुष्यों के कर्मों का फल किसी काल में भी नहीं होता।।12।।

The threefold  fruit  of  action-evil,  good  and  mixed-accrues  after  death  to  the non-abandoners, but never to the abandoners.।।12।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

[email protected] मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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