श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
अध्याय 18
(सन्यास योग)
(कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन)
शरीरवाङ्मनोभिर्यत्कर्म प्रारभते नरः ।
न्याय्यं वा विपरीतं वा पञ्चैते तस्य हेतव।।15।।
मन,वाणी व शरीर से नर करता जो काम
सही गलत उस कर्म के हेतु, पाँच ये नाम।।15।।
भावार्थ : मनुष्य मन, वाणी और शरीर से शास्त्रानुकूल अथवा विपरीत जो कुछ भी कर्म करता है- उसके ये पाँचों कारण हैं।।15।।
Whatever action a man performs by his body, speech and mind, whether right or the reverse, these five are its causes.।।15।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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