श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दैवासुर संपद्विभाग  योग

(फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन)

 

दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता।

मा शुचः सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव।।5।।

 

दैवी संपत्ति शुद्धि हित, आसुरी दुखद महान

पार्थ ! तू दैवी युक्त है, मत कर शोक सुजान।।5।।

 

भावार्थ :  दैवी सम्पदा मुक्ति के लिए और आसुरी सम्पदा बाँधने के लिए मानी गई है। इसलिए हे अर्जुन! तू शोक मत कर, क्योंकि तू दैवी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुआ है ।।5।।

The divine nature is deemed for liberation and the demoniacal for bondage. Grieve not, O Arjuna, for thou art born with divine properties! ।।5।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

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