श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
अध्याय 18
(सन्यास योग)
(कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन)
ज्ञानं ज्ञेयं परिज्ञाता त्रिविधा कर्मचोदना ।
करणं कर्म कर्तेति त्रिविधः कर्मसङ्ग्रहः ।।18।।
ज्ञान, ज्ञेय, ज्ञाता ये हैं कर्म प्रेरणा मूल
साधन, क्रिया व कर्ता हैं, साधन कर्म अनुकूल ।।18।।
भावार्थ : ज्ञाता (जानने वाले का नाम ‘ज्ञाता’ है।), ज्ञान (जिसके द्वारा जाना जाए, उसका नाम ‘ज्ञान’ है। ) और ज्ञेय (जानने में आने वाली वस्तु का नाम ‘ज्ञेय’ है।)- ये तीनों प्रकार की कर्म-प्रेरणा हैं और कर्ता (कर्म करने वाले का नाम ‘कर्ता’ है।), करण (जिन साधनों से कर्म किया जाए, उनका नाम ‘करण’ है।) तथा क्रिया (करने का नाम ‘क्रिया’ है।)- ये तीनों प्रकार का कर्म-संग्रह है।।18।।
Knowledge, the knowable and the knower form the threefold impulse to action; the organ, the action and the agent form the threefold basis of action.।।18।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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