श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अध्याय 18  

(सन्यास   योग)

(कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन)

(तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुख के पृथक-पृथक भेद)

 

पृथक्त्वेन तु यज्ज्ञानं नानाभावान्पृथग्विधान्‌।

वेत्ति सर्वेषु भूतेषु तज्ज्ञानं विद्धि राजसम्‌।।21।।

 

जब भूतों की विविधता में पृथकत्व का भान

तब ऐसे भाव को तो कहते राजस ज्ञान ।।21।।

 

भावार्थ :  किन्तु जो ज्ञान अर्थात जिस ज्ञान के द्वारा मनुष्य सम्पूर्ण भूतों में भिन्न-भिन्न प्रकार के नाना भावों को अलग-अलग जानता है, उस ज्ञान को तू राजस जान।।21।।

But that knowledge which sees in all beings various entities of distinct kinds as different from one another-know thou that knowledge to be Rajasic (passionate).।।21।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

[email protected] मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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