श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
अध्याय 18
(सन्यास योग)
(कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन)
(तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुख के पृथक-पृथक भेद)
यत्तु कृत्स्नवदेकस्मिन्कार्ये सक्तमहैतुकम्।
अतत्त्वार्थवदल्पंच तत्तामसमुदाहृतम्॥
जब कोई एक ही कार्य को ‘सब कुछ यह ही‘ भाव
रखकर बिना हेतु आसक्त हो, तो वह तामस भाव ।।22।।
भावार्थ : परन्तु जो ज्ञान एक कार्यरूप शरीर में ही सम्पूर्ण के सदृश आसक्त है तथा जो बिना युक्तिवाला, तात्त्विक अर्थ से रहित और तुच्छ है- वह तामस कहा गया है॥22॥
But that which clings to one single effect as if it were the whole, without reason, without foundation in Truth, and trivial-that is declared to be Tamasic (dark).
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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