श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
अध्याय 18
(सन्यास योग)
(फल सहित वर्ण धर्म का विषय)
ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परन्तप।
कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणैः॥
ब्राहम्ण, क्षत्रिय, वैष्य के , औ” शूद्रो के कर्म
सहज स्वाभाविक गुणो से , भिन्न हरेक के धर्म ।।41।।
भावार्थ : हे परंतप! ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के तथा शूद्रों के कर्म स्वभाव से उत्पन्न गुणों द्वारा विभक्त किए गए हैं॥41॥
Of Brahmanas, Kshatriyas and Vaishyas, as also the Sudras, O Arjuna, the duties are distributed according to the qualities born of their own nature!
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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