श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

त्रयोदश अध्याय

(ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का विषय)

 

असक्तिरनभिष्वङ्‍ग: पुत्रदारगृहादिषु ।

नित्यं च समचित्तत्वमिष्टानिष्टोपपत्तिषु ।।9।।

 

अनासक्ति हो, मोह न, प्रिय, अप्रिय समभाव

सदा शांतचित रख, रखें इष्ट के हेतु लगाव।।9।।

 

भावार्थ :  पुत्र, स्त्री, घर और धन आदि में आसक्ति का अभाव, ममता का न होना तथा प्रिय और अप्रिय की प्राप्ति में सदा ही चित्त का सम रहना।।9।।

 

Non-attachment, non-identification of the Self with son, wife, home and the rest, and constant even-mindedness on the attainment of the desirable and the undesirable.।।9।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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