श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

त्रयोदश अध्याय

(ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का विषय)

 

सर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेन्द्रियविवर्जितम्‌ ।

असक्तं सर्वभृच्चैव निर्गुणं गुणभोक्तृ च ।।14।।

इंद्रिय रहित भी है मगर, सब इंद्रिय गुण भास

निर्गुण सब गुण भोक्ता, जग पोषक नित पास ।।14।।

 

भावार्थ :  वह सम्पूर्ण इन्द्रियों के विषयों को जानने वाला है, परन्तु वास्तव में सब इन्द्रियों से रहित है तथा आसक्ति रहित होने पर भी सबका धारण-पोषण करने वाला और निर्गुण होने पर भी गुणों को भोगने वाला है।।14।।

 

Shining by  the  functions  of  all  the  senses,  yet  without  the  senses;  unattached,  yet supporting all; devoid of qualities, yet their experience.।।14।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

 

 

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