श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
त्रयोदश अध्याय
(ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुष का विषय)
यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्नं लोकमिमं रविः ।
क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत ।।33।।
ज्यों रवि सारे विश्व में ,करता सहज प्रकाश
त्यों ही क्षेत्री क्षेत्र में ,देता आत्म प्रकाश ।।33।।
भावार्थ : हे अर्जुन! जिस प्रकार एक ही सूर्य इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार एक ही आत्मा सम्पूर्ण क्षेत्र को प्रकाशित करता है।।33।।
Just as the one sun illumines the whole world, so also the Lord of the Field (the Supreme Self) illumines the whole Field, O Arjuna!।।33।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर