श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्दश अध्याय

गुणत्रय विभाग योग

(ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत् की उत्पत्ति)

 

मम योनिर्महद्ब्रह्म तस्मिन्गर्भं दधाम्यहम् ।

सम्भवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत ।।3।।

सदब्रहम (प्रकृति/योनि) में, मैं ही तो करता गभनिधान

जिससे पाता जन्म है जग में सकल जहान।।3।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! मेरी महत्ब्रह्मरूप मूल-प्रकृति सम्पूर्ण भूतों की योनि है अर्थात गर्भाधान का स्थान है और मैं उस योनि में चेतन समुदायरूप गर्भ को स्थापन करता हूँ। उस जड़-चेतन के संयोग से सब भूतों की उत्पति होती है।।3।।

 

My womb is the great Brahma; in that I place the germ; thence, O Arjuna, is the birth of all beings!।।3।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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