श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
चतुर्दश अध्याय
गुणत्रय विभाग योग
(सत्, रज, तम- तीनों गुणों का विषय)
सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसम्भवाः ।
निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम् ।।5।।
सत, रज,तम, गुण प्रकृति से ही लेते हैं जन्म
वही देह में आत्मा को रखते हैं बंद ।।5।।
भावार्थ : हे अर्जुन! सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण -ये प्रकृति से उत्पन्न तीनों गुण अविनाशी जीवात्मा को शरीर में बाँधते हैं॥5॥
Purity, passion and inertia-these qualities, O mighty-armed Arjuna, born of Nature, bind fast in the body, the embodied, the indestructible!।।5।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८