श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
चतुर्दश अध्याय
गुणत्रय विभाग योग
(सत्, रज, तम- तीनों गुणों का विषय)
तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम् ।
सुखसङ्गेन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ ।।6।।
निर्मल सतगुण आत्मा को देता सत् ज्ञान
निरोगता, सद्बुद्धि, सुख हैं उसके ही दान।।6।।
भावार्थ : हे निष्पाप! उन तीनों गुणों में सत्त्वगुण तो निर्मल होने के कारण प्रकाश करने वाला और विकार रहित है, वह सुख के सम्बन्ध से और ज्ञान के सम्बन्ध से अर्थात उसके अभिमान से बाँधता है।।6।।
Of these, Sattwa, which from its stainlessness is luminous and healthy, binds by attachment to knowledge and to happiness, O sinless one! ।।6।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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मो ७०००३७५७९८