श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्थ अध्याय

( सगुण भगवान का प्रभाव और कर्मयोग का विषय )

 

ये यथा माँ प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्‌।

मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ।।11।।

 

जो मुझ को जैसा भजते हैं उन्हें वही फल देता हूँ

मेरे पथ का पार्थ ! अनुगमन करे जो ,उनको सबंल देता हूँ।।11।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! जो भक्त मुझे जिस प्रकार भजते हैं, मैं भी उनको उसी प्रकार भजता हूँ क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं।।11।।

 

In whatever way men approach Me, even so do I reward them; My path do men tread in all ways, O Arjuna! ।।11।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

 

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