श्रीमद् भगवत गीता
पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
प्रथम अध्याय
अर्जुनविषादयोग
(मोह से व्याप्त हुए अर्जुन के कायरता, स्नेह और शोकयुक्त वचन )
कृपया परयाविष्टो विषीदत्रिदमब्रवीत्।
अर्जुन उवाच
दृष्टेवमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्॥
गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्वक्चैव परिदह्यते ।।28।।
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति ।
वेपथुश्च शरीरे में रोमहर्षश्च जायते ।।29।।
दया भाव से भरे मन , से बोला तब पार्थ
कृष्ण देख इन स्वजन को तत्पर यों युद्धार्थ।।28।।
शिथिल है मेरे अंग सब , मुख अति सूखा तात ।
कंपित है सारा बदन , रोमांचित है गात ।। 29।।
भावार्थ : अर्जुन बोले- हे कृष्ण ! युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस स्वजनसमुदाय को देखकर मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे हैं और मुख सूखा जा रहा है तथा मेरे शरीर में कम्प एवं रोमांच हो रहा है॥28 और 29॥
Seeing these, my kinsmen, O Krishna, arrayed, eager to fight. My limbs fail and my mouth is parched up, my body quivers and my hairs stand on end! ॥28 and 29॥
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर
मो ७०००३७५७९८
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)