श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
षष्ठम अध्याय
( विस्तार से ध्यान योग का विषय )
तं विद्याद् दुःखसंयोगवियोगं योगसञ्ज्ञितम्।
स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा ।।23।।
दुख की दुनियाँ से बहुत दूर योग सुख धाम
अनुष्ठान इस योग का मन का पावन काम।।23।।
भावार्थ : जो दुःखरूप संसार के संयोग से रहित है तथा जिसका नाम योग है, उसको जानना चाहिए। वह योग न उकताए हुए अर्थात धैर्य और उत्साहयुक्त चित्त से निश्चयपूर्वक करना कर्तव्य है।।23।।
Let that be known by the name of Yoga, the severance from union with pain. This Yoga should be practised with determination and with an unresponding mind. ।।23।।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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