आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – षष्ठम अध्याय (34) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

षष्ठम अध्याय

 ( मन के निग्रह का विषय )

 

चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्‌।

तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्‌ ।।34।।

 

मन मथने वाला,बड़ा चंचल औ” बलवान

उसे पकड़ रखना कठिन लगता वायु समान।।34।।

 

भावार्थ :  क्योंकि हे श्रीकृष्ण! यह मन बड़ा चंचल, प्रमथन स्वभाव वाला, बड़ा दृढ़ और बलवान है। इसलिए उसको वश में करना मैं वायु को रोकने की भाँति अत्यन्त दुष्कर मानता हूँ ।।34।।

 

The mind verily is restless, turbulent, strong and unyielding, O Krishna! I deem it as  difficult to control as to control the wind. ।।34।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)