आध्यात्म / Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – प्रथम अध्याय (34) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
श्रीमद् भगवत गीता
पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
प्रथम अध्याय
अर्जुनविषादयोग
(मोह से व्याप्त हुए अर्जुन के कायरता, स्नेह और शोकयुक्त वचन)
आचार्याः पितरः पुत्रास्तथैव च पितामहाः ।
मातुलाः श्वशुराः पौत्राः श्यालाः संबंधिनस्तथा ॥
पिता,पितामह,पुत्र औ” सब गुरूजन हो अंध
भूल ससुर साले तथा मामा के संबंध।।34।।
भावार्थ : गुरुजन, ताऊ-चाचे, लड़के और उसी प्रकार दादे, मामे, ससुर, पौत्र, साले तथा और भी संबंधी लोग हैं ॥34॥
There are teachers, fathers, sons and also grandfathers, grandsons, fathers-in-law, maternal uncles, brothers-in-law and relatives.।।34।।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर
मो ७०००३७५७९८
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)