श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
सप्तम अध्याय
ज्ञान विज्ञान योग
( भगवान के प्रभाव और स्वरूप को न जानने वालों की निंदा और जानने वालों की महिमा )
इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत ।
सर्वभूतानि सम्मोहं सर्गे यान्ति परन्तप ।।27।।
राग द्वेष के जाल में फॅसा हुआ संसार
अर्जुन सुख दुख मोह से भ्रमित सतत बेकार।।27।।
भावार्थ : हे भरतवंशी अर्जुन! संसार में इच्छा और द्वेष से उत्पन्न सुख-दुःखादि द्वंद्वरूप मोह से सम्पूर्ण प्राणी अत्यन्त अज्ञता को प्राप्त हो रहे हैं।।27।।
By the delusion of the pairs of opposites arising from desire and aversion, O Bharata, all beings are subject to delusion at birth, O Parantapa!
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर