आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – अष्टम अध्याय (3) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अष्टम अध्याय

(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

 

श्रीभगवानुवाच

अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते ।

भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः ।।3।।

भगवान ने बताया-

है अध्यात्म पर ब्रम्ह का स्वाभाविक आधार

कर्म ही प्राणि स्वभाव के उद्भव का व्यवहार।।3।।

      

भावार्थ :  श्री भगवान ने कहा- परम अक्षर ‘ब्रह्म’ है, अपना स्वरूप अर्थात जीवात्मा ‘अध्यात्म’ नाम से कहा जाता है तथा भूतों के भाव को उत्पन्न करने वाला जो त्याग है, वह ‘कर्म’ नाम से कहा गया है।।3।।

Brahman is the Imperishable, the Supreme; His essential nature is called Self-knowledge;  the  offering  (to  the  gods)  which  causes  existence  and  manifestation  of  beings  and  which  also sustains them is called action.।।3।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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