आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – अष्टम अध्याय (5) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अष्टम अध्याय

(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

 

अंतकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्‌।
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ।।5।।

 

मुझको करते याद जो तजते सहज शरीर
वे पाते मुझको सदा यह विचार गंभीर।।5।।

 

भावार्थ : जो पुरुष अंतकाल में भी मुझको ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे साक्षात स्वरूप को प्राप्त होता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है।।5।।

 

And whosoever, leaving the body, goes forth remembering Me alone at the time of death, he attains My Being; there is no doubt about this.।।5।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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