आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – अष्टम अध्याय (25) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अष्टम अध्याय

(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

( शुक्ल और कृष्ण मार्ग का विषय)

धूमो रात्रिस्तथा कृष्ण षण्मासा दक्षिणायनम्‌।

तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते ।।25।।

 

धूप रात्रि कृष्ण पक्ष दक्षिणायन छःमास

च्ंद्र ज्योति को प्राप्त कर आते फिर आवास।।25।।

 

भावार्थ :  जिस मार्ग में धूमाभिमानी देवता है, रात्रि अभिमानी देवता है तथा कृष्ण पक्ष का अभिमानी देवता है और दक्षिणायन के छः महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गया हुआ सकाम कर्म करने वाला योगी उपयुक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले गया हुआ चंद्रमा की ज्योत को प्राप्त होकर स्वर्ग में अपने शुभ कर्मों का फल भोगकर वापस आता है।।25।।

 

Attaining to the lunar light by smoke, night-time, the dark fortnight or the six months of the southern path of the sun (the southern solstice), the Yogi returns.।।25।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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