श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
नवम अध्याय
( प्रभावसहित ज्ञान का विषय )
अश्रद्दधानाः पुरुषा धर्मस्यास्य परन्तप ।
अप्राप्य मां निवर्तन्ते मृत्युसंसारवर्त्मनि ।।3।।
धर्महीन श्रद्धारहित पुरूष सभी हे पार्थ!
मुझे न पा नित भटकते मृत्यु दुख के मार्ग।।3।।
भावार्थ : हे परंतप! इस उपयुक्त धर्म में श्रद्धारहित पुरुष मुझको न प्राप्त होकर मृत्युरूप संसार चक्र में भ्रमण करते रहते हैं।।3।।
Those who have no faith in this Dharma (knowledge of the Self), O Parantapa (Arjuna), return to the path of this world of death without attaining Me!।।3।।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर