आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (7) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
दशम अध्याय
( विभूति योग)
एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वतः ।
सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशयः ।।7।।
मम इस योग विभूति को जो भी लेता जान
वह निश्चित ही योग से जुडता शुभ पहचान।।7।।
भावार्थ : जो पुरुष मेरी इस परमैश्वर्यरूप विभूति को और योगशक्ति को तत्त्व से जानता है (जो कुछ दृश्यमात्र संसार है वह सब भगवान की माया है और एक वासुदेव भगवान ही सर्वत्र परिपूर्ण है, यह जानना ही तत्व से जानना है), वह निश्चल भक्तियोग से युक्त हो जाता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है।।7।।
He who in truth knows these manifold manifestations of My Being and (this) Yoga-power of Mine, becomes established in the un-shakeable Yoga; there is no doubt about it ।।7।।
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर