श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति तथा विभूति और योगशक्ति को कहने के लिए प्रार्थना )

 

कथं विद्यामहं योगिंस्त्वां सदा परिचिन्तयन्‌।

केषु केषु च भावेषु चिन्त्योऽसि भगवन्मया ।।17।।

 

कैसे जानूँ प्रभु तुम्हें करते चिंतन नित्य

किन किन भावों से करूँ ध्यान तुम्हारा सत्य।।17।।

 

भावार्थ :  हे योगेश्वर! मैं किस प्रकार निरंतर चिंतन करता हुआ आपको जानूँ और हे भगवन्‌! आप किन-किन भावों में मेरे द्वारा चिंतन करने योग्य हैं?।।17।।

 

How shall I, ever meditating, know Thee, O Yogin? In what aspects or things, O blessed Lord, art Thou to be thought of by me?।।17।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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