श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
पुरूषोत्तम योग
(संसार वृक्ष का कथन और भगवत्प्राप्ति का उपाय)
ततः पदं तत्परिमार्गितव्यं यस्मिन्गता न निवर्तन्ति भूयः ।
तमेव चाद्यं पुरुषं प्रपद्ये यतः प्रवृत्तिः प्रसृता पुराणी ।।4।।
आदि पुरूष का वह परं पद ही गमनीय
जहां पहुंच फिर लौटते नहीं लोग वंदनीय
बडे पुरातन काम से चली आ रही रीति
औ उसके अनुगमन में है जीवन की जाति ।।4।।
भावार्थ : उसके पश्चात उस परम-पदरूप परमेश्वर को भलीभाँति खोजना चाहिए, जिसमें गए हुए पुरुष फिर लौटकर संसार में नहीं आते और जिस परमेश्वर से इस पुरातन संसार वृक्ष की प्रवृत्ति विस्तार को प्राप्त हुई है, उसी आदिपुरुष नारायण के मैं शरण हूँ- इस प्रकार दृढ़ निश्चय करके उस परमेश्वर का मनन और निदिध्यासन करना चाहिए ।।4।।
Then that goal should be sought after, whither having gone none returns again. Seek refuge in that Primeval Purusha whence streamed forth the ancient activity or energy. ।।4।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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मो ७०००३७५७९८