आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (28) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध
श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
दशम अध्याय
(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)
आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक्।
प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः ।।28।।
शस्त्रों में मैं वज्र हॅू कामधेनू हूँ गाय
प्रजनन में मैं काम हूँ वासुकि सर्प निकाय।।28।।
भावार्थ : मैं शस्त्रों में वज्र और गौओं में कामधेनु हूँ। शास्त्रोक्त रीति से सन्तान की उत्पत्ति का हेतु कामदेव हूँ और सर्पों में सर्पराज वासुकि हूँ।।28।।
Among weapons I am the thunderbolt; among cows I am the wish-fulfilling cow called Surabhi; I am the progenitor, the god of love; among serpents I am Vasuki.।।28।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर