श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
दशम अध्याय
(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)
सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन ।
अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम्॥
आदि,मध्य औ” अंत हूँ सकल सृष्टि का पार्थ!
विद्या में अध्यात्म हूँ वाचालों में वाद।।32।।
भावार्थ : हे अर्जुन! सृष्टियों का आदि और अंत तथा मध्य भी मैं ही हूँ। मैं विद्याओं में अध्यात्म विद्या अर्थात् ब्रह्मविद्या और परस्पर विवाद करने वालों का तत्व-निर्णय के लिए किया जाने वाला वाद हूँ।।32।।
Among creations I am the beginning, the middle and also the end, O Arjuna! Among the sciences I am the science of the Self; and I am logic among controversialists. ।।32।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर