श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(संजय द्वारा धृतराष्ट्र के प्रति विश्वरूप का वर्णन )

 

तत्रैकस्थं जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकधा ।

अपश्यद्देवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा ।। 13 ।।

तव ईश्वर की देह में , ही सारा संसार

अर्जुन ने देखा , प्रकट – विघटित विविध प्रकार ।। 13 ।।

 

भावार्थ :  पाण्डुपुत्र अर्जुन ने उस समय अनेक प्रकार से विभक्त अर्थात पृथक-पृथक सम्पूर्ण जगत को देवों के देव श्रीकृष्ण भगवान के उस शरीर में एक जगह स्थित देखा।। 13 ।।

.There, in the body of the God of gods, Arjuna then saw the whole universe resting in the one, with its many groups.।। 13 ।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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