श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
एकादश अध्याय
(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )
अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रंपश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम् ।
नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिंपश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप ।। 16।।
बाहु उदर मुख नेत्र कई , अगनित रूप अनन्त
सभी तरफ बस आप हैं , कहीं न कोई अन्त
विश्वेसर विस्मित हूँ मैं , देख तुम्हारा रूप
आदि न अन्त न मध्य है , सब है अजब अनूप ।। 16।।
भावार्थ : हे सम्पूर्ण विश्व के स्वामिन्! आपको अनेक भुजा, पेट, मुख और नेत्रों से युक्त तथा सब ओर से अनन्त रूपों वाला देखता हूँ। हे विश्वरूप! मैं आपके न अन्त को देखता हूँ, न मध्य को और न आदि को ही॥16॥
I see Thee of boundless form on every side, with many arms, stomachs, mouths and eyes; neither the end nor the middle nor also the beginning do I see, O Lord of the universe, O Cosmic Form!
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर