श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
एकादश अध्याय
(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )
अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्यमनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रम् ।
पश्यामि त्वां दीप्तहुताशवक्त्रंस्वतेजसा विश्वमिदं तपन्तम् ।। 19।।
आदि मध्य औ” अन्त से ,रहित अमित विस्तार
जिसका बल अनुमेय न , जिसके हाथ हजार
चंद्र – सूर्य हैं आँख दो , मुख ज्वाला- अंगार
जिसके दीप्त प्रकाश से भासित यह संसार ।। 19।।
भावार्थ : आपको आदि, अंत और मध्य से रहित, अनन्त सामर्थ्य से युक्त, अनन्त भुजावाले, चन्द्र-सूर्य रूप नेत्रों वाले, प्रज्वलित अग्निरूप मुखवाले और अपने तेज से इस जगत को संतृप्त करते हुए देखता हूँ।। 19।।
I see Thee without beginning, middle or end, infinite in power, of endless arms, the sun and the moon being Thy eyes, the burning fire Thy mouth, heating the entire universe with Thy radiance.
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर