श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
एकादश अध्याय
(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )
अमी हि त्वां सुरसङ्घा विशन्ति केचिद्भीताः प्राञ्जलयो गृणन्ति।
स्वस्तीत्युक्त्वा महर्षिसिद्धसङ्घा: स्तुवन्ति त्वां स्तुतिभिः पुष्कलाभिः ॥
देवताओं के संघ जो तुममें निरत प्रवेश
हाथ जोड़कर कर रहे विनती सतत विशेष
स्वस्ति , स्वस्ति यों कह रहे ऋषि व सिद्ध के संघ
करते है प्रार्थनायें कई ,सब मिल के एक संग ।। 21 ।।
भावार्थ : वे ही देवताओं के समूह आप में प्रवेश करते हैं और कुछ भयभीत होकर हाथ जोड़े आपके नाम और गुणों का उच्चारण करते हैं तथा महर्षि और सिद्धों के समुदाय ‘कल्याण हो’ ऐसा कहकर उत्तम-उत्तम स्तोत्रों द्वारा आपकी स्तुति करते हैं।। 21 ।।
Verily, into Thee enter these hosts of gods; some extol Thee in fear with joined palms: “May it be well.” Saying thus, bands of great sages and perfected ones praise Thee with complete hymns.।। 21 ।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर