आध्यात्म/Spiritual ☆ श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (25) ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

(भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन)

 

महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्‌।

यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ।।25।।

 

 महर्षियों में भृगु ऋषि ,भाषा में ओंकार

 यज्ञों में जप यज्ञ मैं अचलों में गिरिराज।।25।।

 

भावार्थ :  मैं महर्षियों में भृगु और शब्दों में एक अक्षर अर्थात्‌‌ओंकार हूँ। सब प्रकार के यज्ञों में जपयज्ञ और स्थिर रहने वालों में हिमालय पहाड़ हूँ।।25।।

 

Among the great sages I am Bhrigu; among words I am the monosyllable Om; among sacrifices I am the sacrifice of silent repetition; among immovable things the Himalayas I am.।।25।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]