प्रिय भाई और मित्र जय प्रकाश पाण्डेय जी
💐🙏 अश्रुपूर्ण विनम्र श्रद्धांजलि 💐🙏
प्रिय मित्रों,
वैसे तो इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति एक विशिष्टता लेकर आता है और चुपचाप चला जाता है। फिर छोड़ जाता है वे स्मृतियाँ जो जीवन भर हमारे साथ चलती हैं। लगता है कि काश कुछ दिन और साथ चल सकता । किन्तु विधि का विधान तो है ही सबके लिए सामान, कोई कुछ पहले जायेगा कोई कुछ समय बाद। किन्तु, जय प्रकाश भाई आपसे यह उम्मीद नहीं थी कि इतने जल्दी साथ छोड़ देंगे। अभी कुछ ही दिन पूर्व नागपूर जाते समय आपसे लम्बी बात हुई थी जिसे मैं अब भी टेप की तरह रिवाइंड कर सुन सकता हूँ। और आज दुखद समाचार मिला कि आप हमें छोड़ कर चले गए। इस बीच न जाने कितने अपुष्ट समाचार मिलते रहे और हम सभी मित्र परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना करते रहे कि कुछ चमत्कार हो जाये और हम सब को आपका पुनः साथ मिल जाए।
कहाँ गए वे लोग ?
इस वर्ष (२०२४) के प्रारम्भ से ही जय प्रकाश जी के मन में चल रहा था कि एक ऐतिहासिक साप्ताहिक स्तम्भ “कहाँ गए वे लोग?” प्रारम्भ किया जाये जिसमें हम अपने आसपास की ऐसी महान हस्तियों की जानकारी प्रकाशित करें जो आज हमारे बीच नहीं हैं किन्तु, उन्होने देश के स्वतंत्रता संग्राम, साहित्यिक, सामाजिक या अन्य किसी क्षेत्र में अविस्मरणीय कार्य किया है। और २८ फरवरी २०२४ को इस श्रृंखला की पहली कड़ी में पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जी की स्मृति में एक आलेख प्रकाशित कर इस श्रृंखला को प्रारम्भ किया। भाई जय प्रकाश जी की रुग्णावस्था में इस कड़ी को भाई प्रतुल श्रीवास्तव जी ने सतत जारी रखा। हमें यह कल्पना भी नहीं थी कि जिस श्रृंखला को उन्होने प्रारम्भ किया हमें उस श्रृंखला में उनकी स्मृतियों को भी जोड़ना पड़ेगा। इससे अधिक कष्टप्रद और दुखद क्षण हमारे लिए हो ही नहीं सकते।
हम भाई जय प्रकाश जी और श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी के साथ मिलकर सदैव नूतन और अभिनव प्रयोग की कल्पना कर उन्हें साकार करने का प्रयास करते रहते थे। इसके परिणाम स्वरूप हमने महात्मा गांधी जी के150वीं जयंती पर गांधी स्मृति विशेषांक, हरिशंकर परसाई जन्मशती विशेषांक, दीपावली विशेषांक जैसे विशेषांकों को प्रकाशित किया। डॉ कुंदन सिंह परिहार जी के 85 वे जन्मदिवस पर “85 पर – साहित्य के कुंदन” का प्रकाशन उनके ही मस्तिष्क की उपज थी। ऐसे कई अभिनव प्रयोग अभी भी अधूरे हैं और कई अभिनव प्रयोग उनके मन में थे जो उनके साथ ही चले गए।
व्यंग्यम और व्यंग्य पत्रिकाओं से उनका जुड़ाव
व्यंग्यम संस्था तो जैसे उनके श्वास के साथ ही जुड़ी थी। ऐसी कोई चर्चा नहीं होती थी जिसमें व्यंग्यम, अट्टहास और अन्य साहित्यिक पत्रिकाओं की चर्चा न होती हो। व्यंग्यम के वरिष्ठ सदस्यों और व्यंग्यकार मित्रो के दुख का सहभागी हूँ।
व्यंग्यम, अट्टहास और अन्य पत्रिकाओं से जुड़े सभी वरिष्ठ साहित्यकारों और व्यंग्यकार मित्रो से मेरा विनम्र अनुरोध है कि कृपया आप भाई जय प्रकाश जी से जुड़ी हुई अपनी स्मृतियाँ और संक्षिप्त विचार [email protected] या [email protected] पर शीघ्रतिशीघ्र प्रेषित करने का कष्ट कीजिए। ई-अभिव्यक्ति का सोमवार ३० दिसंबर का अंक श्रद्धासुमन स्वरूप उन्हें समर्पित है।
बस इतना ही।
हेमन्त बावनकर
२७ दिसंबर २०२४