ई-अभिव्यक्ति: संवाद-10 – हेमन्त बावनकर
ई-अभिव्यक्ति: संवाद–10
मेरे जैसे फ्रीलान्स लेखक के लिए अपने ब्लॉग के लेखकों / पाठकों की संख्या का निरंतर बढ़ना मेरे गौरवान्वित होने का नहीं अपितु, मित्र लेखकों / पाठकों के गौरवान्वित होने का सूचक है। यह सब आप सबके प्रोत्साहन एवं सहयोग का सूचक है। साथ ही यह इस बात का भी सूचक है कि इस चकाचौंध मीडिया और दम तोड़ती स्वस्थ साहित्यिक पत्रिकाओं के दौर में भी लेखकों / पाठकों की स्वस्थ साहित्य की लालसा अब भी जीवित है। लेखकों /पाठकों का एक सम्मानित वर्ग अब भी स्वस्थ साहित्य/पत्रकारिता लेखन/पठन में तीव्र रुचि रखता है।
अन्यथा इस संवाद के लिखते तक मुझे निरंतर बढ़ते आंकड़े साझा करने का अवसर प्राप्त होना असंभव था। अत्यंत प्रसन्नता का विषय है कि 15 अक्तूबर 2018 से आज तक 5 माह 9 दिनों में कुल 542 रचनाएँ प्रकाशित की गईं। उन रचनाओं पर 360 कमेंट्स प्राप्त हुए और 10,000 से अधिक सम्माननीय लेखक/पाठक विजिट कर चुके हैं।
प्रतिदिन इस यात्रा में नवलेखकों से लेकर वरिष्ठतम लेखकों और पाठकों का जुड़ना मेरे लिए सौभाग्य की बात है।
सबसेअधिक सौभाग्य के क्षण मैं आपसे साझा करना चाहता हूँ।
इस जबलपुर प्रवास के दौरान मुझे अपने जीवन के दो महत्वपूर्ण एवं स्मरणीय क्षणों को सँजो कर रखने का अवसर प्राप्त हुआ।
प्रथम डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र” जी से आशीर्वचन स्वरूप उनकी साहित्यिक यात्रा के विभिन्न पड़ावों से रूबरू होने का अवसर प्राप्त हुआ।
दूसरा संयोग बड़ा ही अद्भुत एवं आलौकिक था। इस संदर्भ में बेहतर होगा कि मैं उस वाकये को सचित्र आपसे साझा करूँ जो कि सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी की फेसबुक वाल से साभार उद्धृत करना चाहूँगा।
ऐसे व्यक्तिगत एवं आत्मीय क्षणों में मेरी प्रतिकृया मात्र यह थी >>>
इन दोनों ही क्षणों में अनुज डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’ जी के साथ ने ईश्वर द्वारा प्रदत्त इस अवसर को अविस्मरणीय बना दिया।
जीवन में ऐसे सुखद क्षणों की हम मात्र कल्पना ही कर पाते हैं। किन्तु, जब कभी ऐसे क्षण ईश्वर हमें देते हैं तो उन्हें अंजुरी में समेटना बड़ा कठिन लगता है । ऐसा लगता है कि ये कि ये क्षण सदैव के लिए हृदय के कैमरे में अंकित हो जाएँ। और वे हो गए।
आज बस इतना ही।
हेमन्त बावनकर
24 मार्च 2019