ई-अभिव्यक्ति: संवाद-18 – हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–18      

कल चाहकर भी आपसे संवाद न कर सका।  उम्र के साथ कई बार समय तो कई बार शरीर भी साथ नहीं दे पाता। किन्तु आपके व्हाट्सएप्प एवं फोन पर व्यक्तिगत संदेश मुझे  संबल प्रदान करते रहते हैं। कुछ और नवीन रचनाएँ साझा करने हेतु प्रोत्साहित करते रहते हैं।

किसी भी दिन के लिए रचनाएँ चुन कर आपको प्रस्तुत करना किसी जादुई बक्से में से विभिन्न विधाओं और जीवन के विभिन्न रंगो से भरी रचनाएँ प्रस्तुत करने जैसा होता है।

इस संदर्भ में मुझे मेरी कविता “मकबूल फिदा हुसैन – हाशिये में” की निम्न पंक्तियाँ याद आती हैं:

मै दुनिया को देखता हूँ

एक मासूम बच्चे की आँखों से।

मेरे लिये

प्रत्येक दिन आता है

एक जादू के बक्से में बन्द

अद्भुत

नजारो और रंगों से भरपूर

रंगों के प्रयोगों से भरपूर।”

और वास्तव में स्थायी स्तम्भ श्रीमद्भगवत गीता एवं श्री जगत सिंह बिष्ट जी की योग साधना के साथ ही आज की रचनाएँ किसी जादू के बक्से में बंद रचनाओं से कम नहीं है।

श्री संतोष ज्ञानेश्वर भुमकर जी की मराठी कविता “असीम बलिदान ‘पोलीस’” हमें सोचने के लिए मजबूर करती है कि पुलिस अथवा सेना में कार्यरत जवानों का हृदय भी हमारी तरह ही धड़कता है।  वे भी हमारी तरह सोच रखते हैं। वे भी हमारी तरह जीवन के गीत गाते हैं साहित्य रचते  हैं। सैनिक यदि राष्ट्र की सीमाओं पर हमारे राष्ट्र की रक्षा करते हैं तो पुलिस राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा कर समाज एवं राष्ट्र की रक्षा करते हैं जिसके कारण आप और हम चैन की नींद सोते हैं।  एक भूतपूर्व सैनिक होने के कारण मैं पुलिस/सैन्य जीवन के इस तथ्य की महत्ता को सशक्त रूप से आपके समक्ष रख सकता हूँ।

सुश्री ऋतु गुप्ता जी की लघु कथा हमें अपने व्यवसाय/कर्मभूमि के अतिरिक्त परिवार एवं समाज के प्रति फर्ज़ (कर्तव्य) का पाठ सिखाती है। डॉ प्रदीप शशांक जी की लघुकथा “सर्जिकल स्ट्राइक” धर्म सम्प्रदाय की कट्टरपंथी सोच पर तमाचा है। शशांक जी की लघुकथा हमें यह सोचने पर मजबूर करटी है कि क्या सर्जिकल स्ट्राइक जैसे शब्दों का प्रयोग सामाजिक परिवेश के सुधार/उत्थान के लिए भी किया जा सकता है?

आज बस इतना ही।

हेमन्त बावनकर

4 अप्रैल 2019