ई-अभिव्यक्ति: संवाद–44
☆ ई-अभिव्यक्ति वेबसाइट को मिला 1,00,800+ विजिटर्स (सम्माननीय एवं प्रबुद्ध लेखकगण/पाठकगण) का प्रतिसाद ☆
आज के संवाद के माध्यम से मुझे पुनः आपसे विमर्श का अवसर प्राप्त हुआ है।
‘ई-अभिव्यक्ति वेबसाइट को मिला 1,00,800+ विजिटर्स (सम्माननीय एवं प्रबुद्ध लेखकगण/पाठकगण) का प्रतिसाद’ शीर्षक से आपके साथ संवाद करना निश्चित ही मेरे लिए गौरव के क्षण हैं। इस अकल्पनीय प्रतिसाद एवं इन क्षणों के आप ही भागीदार हैं। यदि आप सब का सहयोग नहीं मिलता तो मैं इस मंच पर इतनी उत्कृष्ट रचनाएँ देने में स्वयं को असमर्थ पाता। मैं नतमस्तक हूँ आपके अपार स्नेह के लिए। आप सबका हृदयतल से आभार।
वैसे तो मुझे कल ही आपसे विमर्श करना था जब आगंतुकों की संख्या 1,00,000 के पार हो गई थी। किन्तु, हृदय कई बातों को लेकर विचलित था। उनमें कुछ आपसे साझा करना चाहूंगा। कल मेरे परम पूज्य पिताश्री टी डी बावनकर जी की पुण्य तिथि थी, जिनके बिना मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं होता। यह सप्ताह भोपाल गैस त्रासदी का गवाह था जिसमें कई निर्दोष लोगों की जान गई जिनकी स्मृतियाँ उनके परिजनों के अतिरिक्त किसी के पास नहीं हैं। यह सप्ताह ‘एक और निर्भया’ की हृदयविदारक पीड़ा को समर्पित था। और कल के ही दिन भारत के संविधान निर्माता डॉ भीमराव आम्बेडकर जी का महापरिनिर्वाण दिवस था। भला ऐसे में लेखनी कैसे चलती?
मेरे पास ‘एक और निर्भया’ से सम्बंधित और समय समय पर ‘जीवन के कटु सत्य’ को उजागर करती रचनाएँ आती हैं किन्तु, स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति की सीमाएं मुझे प्रकाशित करने से रोकती हैं जिसके लिए मैं सम्माननीय लेखकगणों से करबद्ध क्षमा चाहूंगा। इस सन्दर्भ में मैं अपने परम आदरणीय गुरुवर डॉ राजकुमार ‘ सुमित्र’ जी की आशीर्वाद स्वरुप कविता उद्धृत करना चाहूंगा जो मेरी मार्गदर्शक हैं और इस वेबसाइट के मुखपृष्ठ पर अंकित हैं।
सन्दर्भ : अभिव्यक्ति
संकेतों के सेतु पर, साधे काम तुरन्त ।
दीर्घवायी हो जयी हो, कर्मठ प्रिय हेमन्त ।।
काम तुम्हारा कठिन है, बहुत कठिन अभिव्यक्ति।
बंद तिजोरी सा यहाँ, दिखता है हर व्यक्ति ।।
मनोवृत्ति हो निर्मला, प्रकट निर्मल भाव।
यदि शब्दों का असंयम, हो विपरीत प्रभाव।।
सजग नागरिक की तरह, जाहिर हो अभिव्यक्ति।
सर्वोपरि है देशहित, बड़ा न कोई व्यक्ति ।।
– डॉ राजकुमार “सुमित्र”
आपसे काफी कुछ कहना है और अब मेरा प्रयास रहेगा कि मैं आपसे नियमित संवाद करूँ। आशा है ईश्वर मुझे मेरी लेखनी को आपसे जोड़ने की शक्ति प्रदान करे। अंत में मैं गैस त्रासदी पर अपनी रचना के कुछ अंश के माध्यम से श्रद्धांजलि देते हुए लेखनी को क्षणिक विराम देता हूँ।
और …. दूर
आपसे अनुरोध है कि हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार जो आज भी हमारे बीच उपस्थित हैं और जिन्होंने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में लगा दिया उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को यदि हम अपनी पीढ़ी एवं आने वाली पीढ़ी से साझा करें तो उन्हें निश्चित ही ई- अभिव्यक्ति के माध्यम से चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेने जैसा क्षण होगा। इस प्रयास में हमने आचार्य भगवत दुबे जी एवं डॉ राजकुमार ‘ सुमित्र’ जी की चर्चा की है। इस रविवार हम प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर ससम्मान आलेख प्रकाशित कर रहे हैं। आपसे अनुरोध है कि ऐसी वरिष्ठतम पीढ़ी के मातृ-पितृतुल्य पीढ़ी के कार्यों को सबसे साझा करने में हमें सहायता प्रदान करें।
आज बस इतना ही।
हेमन्त बावनकर
7 दिसंबर 2019