प्रिय आनंद
अश्रुपूर्ण विनम्र श्रद्धांजलि
☆ ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 50 ☆ ई- अभिव्यक्ति का आज का अंक अनुजवत मित्र स्वर्गीय आनंद लोचन दुबे जी को समर्पित ☆
प्रिय मित्रों,
वैसे तो इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति एक विशिष्टता लेकर आता है और चुपचाप चला जाता है। फिर छोड़ जाता है वे स्मृतियाँ जो जीवन भर हमारे साथ चलती हैं। लगता है कि काश कुछ दिन और साथ चल सकता । किन्तु विधि का विधान तो है ही सबके लिए सामान, कोई कुछ पहले जायेगा कोई कुछ समय बाद। किन्तु, आनंद तुमसे यह उम्मीद नहीं थी कि इतने जल्दी साथ छोड़ दोगे। अभी 19 मई को ही तो तुमसे लम्बी बात हुई थी जिसे मैं अब भी टेप की तरह रिवाइंड कर सुन सकता हूँ। और आज दुखद समाचार मिला कि 20 मई 2020 की रात हृदयाघात से तुम चल बसे।
प्रिय मित्रों, आप जानना नहीं चाहेंगे यह शख्सियत कौन है ? आपके लिए मित्र आनंद, भारतीय स्टेट बैंक, सिमरिया, कटनी शाखा का शाखा प्रबंधक था। किन्तु, मेरे लिए मेरा अभिन्न अनुजवत मित्र था। हमारे 1984 में मित्रवत सम्बन्ध बनायें कब अनुजवत बन गए हम समझ ही नहीं पाए और मैं सारी जिंदगी अग्रज का सम्बन्ध निभाता चला गया। उसने भी ताउम्र वह अनुजवत सम्बन्ध बड़ी संजीदगी से निभाया रक्त संबंधों से भी अधिक संजीदगी से। पुत्र पुत्री के विवाह के समय से लेकर प्रत्येक सुख दुःख में एक रिश्तेदार से भी अधिक संजीदगी से निभाया रिश्ता कैसे भूल सकता हूँ।? जब भी सुख के क्षण थे तो दूर रहकर भी ह्रदय के पास साथ ही रहकर हमनें खुशियां बांटी और तुम सदैव दुःख के क्षणों में मेरा सम्बल बने। हर समय मुस्कराते रहे, खुशियां बाँटते रहे और अपना दुःख बिना किसी से साझा किये अपने ह्रदय में जोड़ते रहे और शायद यह इसी की परिणीति हो, पता नहीं ऐसा क्यों मेरा ह्रदय कहता है ? मैं कहता था वीआरएस ले लो तो तुम कहते बस गुड़िया की शादी हो जाए फिर वीआरएस लेकर मिलेंगे बैठेंगे, गपशप करेंगे, घूमेंगे फिरेंगे और आराम से जिंदगी गुजारेंगे। आखिर वे क्षण कल्पना में ही रहे और तुम्हारे साथ ही चले गए. ऐसे में मुझे वह अंग्रेजी कहावत याद आती है “man proposes and god disposes”.
प्रिय आनंद, तुमसे ही सीखा था रिश्ते और दोस्ती के मायने फिर तुम्हारे लिए एक कविता लिखी, किन्तु, साहस जुटा कर बता न पाया कि वह कविता तुम्हारे लिए ही थी। एक दिन फेसबुक पर पोस्ट किया और तुमने दो शब्दों में प्रत्युत्तर दिया “सुन्दर विचार”। इन दो शब्दों को संजो कर रखा है, जिसका अर्थ मेरे और तुम्हारे सिवाय कोई नहीं जान सकता। आप सब से साझा कर रहा हूँ वह रचना
रिश्ते और दोस्ती
सारे रिश्तों के मुफ्त मुखौटे मिलते हैं जिंदगी के बाजार में
बस अच्छी दोस्ती के रिश्ते का कोई मुखौटा ही नहीं होता
कई रिश्ते निभाने में लोगों की तो आवाज ही बदल जाती है
बस अच्छी दोस्ती में कोई आवाज और लहजा ही नहीं होता
रिश्ते निभाने के लिए लोग ताउम्र लिबास बदलते रहते हैं
बस अच्छी दोस्ती निभाने में लिबास बदलना ही नहीं होता
बहुत फूँक फूँक कर कदम रखना पड़ता है रिश्ते निभाने में
बस अच्छी दोस्ती में कोई कदम कहीं रखना ही नहीं होता
जिंदगी के बाज़ार में हर रिश्ते की अपनी ही अहमियत है
बस अच्छी दोस्ती को किसी रिश्ते में रखना ही नहीं होता
किन्तु, मैं आप सबसे यह सब क्यों कह रहा हूँ ? संभवतः इसलिए कि यदि पहचान सकें तो पहचानने का प्रयास करें अपने आस पास अपने ऐसे ही किसी प्रिय मित्र को। आपको हर तरह के सम्बन्ध बहुत मिलेंगे किन्तु ऐसे अनुज अथवा अग्रज मित्रवत सम्बन्ध शायद न मिल सके। और यदि वास्तव में आपके ऐसे मित्र हैं तो उन्हें धर्म, जाति या समुदाय से परे संजो कर रखें। उन्हें खोइयेगा मत मेरे ये शब्द नहीं मेरे अनुभव हैं।
संयोगवश डॉ मुक्ता जी का आज प्रकाशित आलेख आज ज़िंदगी : कल उम्मीद पठनीय है।
बस इतना ही।
हेमन्त बावनकर
22 मई 2020
रिश्तों को सच्चाई से जीनेवाले व्यक्तित्व को प्रणाम। स्व. आनंद जी को श्रद्धांजलि।