ई-अभिव्यक्ति: संवाद– 9
यह एक शाश्वत सत्य है कि जीवन एक पहेली है। आम तौर पर एक व्यक्ति जीवन में कम से कम तीन पीढ़ियाँ अवश्य देखता है। यदि सौभाग्यशाली रहा और ईश्वर ने चाहा तो चार या पाँच पीढ़ी भी ब्याज स्वरूप देख सकता है।
आज मैं आपसे संवाद स्वरूप यह कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ । पढ़ कर प्रतिकृया देंगे तो मुझे बेहद अच्छा लगेगा।
जिंदगी का गणित
वैसे भी
मेरे लिए
गणित हमेशा से
पहेली रही है।
बड़ा ही कमजोर था
बचपन से
जिंदगी के गणित में।
शायद,
जिंदगी गणित की
सहेली रही है ।
फिर,
ब्याज के कई प्रश्न तो
आज तक अनसुलझे हैं।
मस्तिष्क के किसी कोने में
बड़ा ही कठिन प्रश्न-वाक्य है
“मूलधन से ब्याज बड़ा प्यारा होता है!”
इस
‘मूलधन’ और ‘ब्याज’ के सवाल में
‘दर’ कहीं नजर नहीं आता है।
शायद,
इन सबका ‘समय’ ही सहारा होता है।
दिखाई देने लगता है
खेत की मेढ़ पर
खेलता – एक छोटा बच्चा
कहीं काम करते – कुछ पुरुष
पृष्ठभूमि में
काम करती – कुछ स्त्रियाँ
और
एक झुर्रीदार चेहरा
सिर पर फेंटा बांधे
तीखी सर्दी, गर्मी और बारिश में
चलाते हुये हल।
शायद,
उसने भी की होगी कोशिश
फिर भी नहीं सुलझा पाया होगा
इस प्रश्न का हल।
आज तक
समझ नहीं पाया
कि
कब मूलधन से ब्याज हो गया हूँ ?
कब मूलधन से ब्याज हो गया है ?
यह प्रश्न
साधारण ब्याज का है?
या
चक्रवृद्धि ब्याज का है?
मूलधन किस पीढ़ी का है ?
और
उसे ब्याज समेत चुकाएगा कौन?
और
यदि चुकाएगा भी
तो किस दर पर
और
किसके दर पर ?
आज बस इतना ही।
हेमन्त बावनकर