जीवन-यात्रा- सुश्री निशा नंदिनी भारतीय

सुश्री निशा नंदिनी भारतीय 

 

(सुदूर उत्तर -पूर्व  भारत की  वरिष्ठ एवं प्रख्यात  लेखिका/कवियित्री सुश्री निशा नंदिनी  भारतीय जी साहित्य ही नहीं  अपितु समाज सेवा में भी लीन हैं. हमें गर्व है कि आप ई-अभिव्यक्ति  की एक सम्माननीय लेखिका हैं.   इस साक्षात्कार  के माध्यम से आपने अपने जीवन  की  महत्वपूर्ण  साहित्यिक उपलब्धियां  एवं साहित्यिक तथा सामाजिक जीवन पर विस्तृत चर्चा की है. आपकी जीवन यात्रा निश्चित ही नवोदितों के लिए प्रेरणास्पद है. सुश्री  निशा नंदिनी  जी  का इस साक्षात्कार के लिए आभार. )

 

☆ जीवन यात्रा – सुश्री निशा नंदिनी भारतीय ☆

 

१. आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि एवं शिक्षण ?

जी, मेरा जन्म रामपुर उत्तर प्रदेश में 1962 में हुआ। मेरे पिता रामपुर शुगर मिल में चीफ इंजीनियर थे। विद्या मंदिर गर्ल्स इंटर कॉलेज द्वारा इलाहाबाद बोर्ड से दसवीं और बारहवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। इसके बाद रुहेलखंड विश्व विद्यालय बरेली से बी.ए प्रथम श्रेणी में तथा  एम.ए हिन्दी में प्रथम श्रेणी में पास किया। 21 वर्ष की आयु में (बी. एड) के प्रारंभ में ही सन 1984 में ग्वालियर मध्य प्रदेश में विवाह हो गया। लगभग दो वर्ष ग्वालियर के “के.आर जी कॉलेज” में अध्यापन कार्य किया।

चूंकि पति असम के तिनसुकिया शहर में व्यवसाय करते थे, तो नौकरी छोड़कर हम तिनसुकिया आ गए। तिनसुकिया में हमने विभिन्न स्कूल व कॉलेज में लगभग 30 वर्ष अध्यापन किया।

तिनसुकिया में रहते हुए ही समाज शास्त्र व दर्शनशास्त्र में एम. ए. भी किया।  2018 में लेखन की व्यस्तता के चलते विवेकानंद केंद्र विद्यालय से स्वेच्छिक रिटायरमेंट ले लिया। वर्तमान में असम हाइट्स स्कूल में सलाहकार व काउंसलर हैं। हमारे तीन बच्चे हैं। एक बेटा और जुड़ाव बेटियां – रोचक, रुमिता और रुहिता। वर्तमान में तीनों अमेरिका, जर्मनी और बैंकॉक में कार्य कर रहे हैं।

 

२. लेखन में आगमन एवं प्रारंभिक लेखन की प्रेरणा ?

जी, बहुत अच्छा प्रश्न किया आपने। कक्षा तीसरी-चौथी से ही पुस्तकों की कविताओं को याद करके विद्यालय में उनकी प्रस्तुति  करना बहुत अच्छा लगता था। जबकि अर्थ समझ में नहीं आता था। इस तरह कविता से लगाव बचपन से ही था। कुछ शब्दों के साथ तुकबंदी और खिलवाड़ चलता रहता था,पर हमने पहली कविता कक्षा दस में घर के आंगन में चारपाई पर बैठ कर लिखी थी। जिसमें प्रकृति चित्रण किया था।

“था चांदनी रात का प्रथम पहर

मैं बैठा था अपने प्रांगण में।”

और इस तरह फिर कविताओं का सिलसिला चल पड़ा। स्कूल की पत्रिका में, अखबार आदि में। हमारे कॉलेज में आशु कविता प्रतियोगिता होती थी उसमें हमारी रचना हमेशा प्रथम  आती थी।

और हाँ, किसने सबसे ज्यादा प्रोत्साहित किया। इसमें अलग-अलग आयु में अलग अलग लोग थे। बचपन में पिता से बहुत प्रोत्साहन मिला। स्कूल कॉलेज में शिक्षकों से और विवाह उपरांत मेरे पति मेरी रचनाओं की आलोचना करते थे। इस तरह लेखन का सिलसिला चल पड़ा।

 

३. पुस्तक प्रकाशन एवं पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन 

जी,अब तक 40 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और पांच पुस्तकें प्रकाशन प्रक्रिया में हैं। लगभग 31 पत्रिकाओं में और 13 समाचार पत्रों में लेख, कविता, जीवनी, निबंध आदि छप चुके हैं।

 

४. साहित्य की विधाएँ जिनमें आप अपनी कलम चला रही हैं:

जी, अब तक कविता, कहानी, निबंध, संस्मरण, लेख, जीवनी, बाल उपन्यास आदि पर लेखनी चलाई है और सतत् चल रही है।

 

५. अपने नाम के साथ ‘भारतीय’ उपनाम कब से और क्यों  ?

जी, यह प्रश्न बहुत लोग करते हैं।

मैंने अपने नाम के साथ भारतीय यही कोई पाँचसाल पहले लगाना शुरू किया है। इसका मुख्य कारण तो यह है कि मैं भारत की रहने वाली हूँ इसलिए मैं भारतीय हूँ। हम सबकी एक ही जाति होना चाहिए और वह जाति है ‘भारतीय’। मुझे अपने आपको भारतीय कहने पर बहुत गर्व होता है इसलिए मैंने अपने नाम साथ  भारतीय लगाना प्रारंभ किया। मेरी अधिकतर रचनाएं समाज व देश को समर्पित है।

 

६. पाठ्य पुस्तकों में आपकी किन रचनाओं को स्थान मिला ?

जी हाँ, मेरी पुस्तक “शिशु गीत”असम के पाँच स्कूलों में चल रही है और मेरी एक कविता जिसका शीर्षक है “प्रयत्न” अमरावती विश्व विद्यालय के (बी. कॉम) प्रथम वर्ष में तीन वर्षों से पढ़ाई जा रही है। पुस्तक का नाम “गुँजन” है।

 

७. क्या आपकी कोई पुस्तक अनुवादित होकर भी प्रकाशित हुई है ?

जी हाँ, मेरे बाल उपन्यास “जादूगरनी हलकारा” का असमिया भाषा में अनुवाद हुआ है और दो पुस्तकों पर अनुवाद का कार्य चल रहा है।

 

८.  साहित्य सेवा के लिए आपको अब तक कितने सम्मान मिल चुके हैं ?

जी, हमने गिने नहीं हैं लेकिन हाँ, साहित्य के क्षेत्र में देश-विदेश में अब तक लगभग लगभग पच्चीस सम्मान मिल चुके हैं।

 

९. आप किन-किन संस्थाओं से जुड़ी हुई है ?

जी, मैं  “इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल न्यास”, “शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास”, विवेकानंद केंद्र कन्या कुमारी से , एकल विद्यालय, मारवाणी सम्मेलन समिति, लॉयंस क्लब, हार्ट केयर सोसायटी, महिला आयोग तथा अहिंसा यात्रा आदि संगठनों से जुड़ी हूँ।

 

१०. एक लेखक के लिए पुस्तक प्रकाशन का महत्व  

जी, बहुत अच्छा प्रश्न किया आपने। एक लेखक को पहचान उसकी पुस्तकों के माध्यम से ही मिलती है। पाठक पुस्तक पढ़ने के बाद ही लेखक के व्यक्तित्व और कृतित्व से रूबरू होता है क्योंकि लेखक का लेखन उसके व्यक्तित्व का आइना होता है। पुस्तकों के माध्यम से लेखक युग युग तक रोशनी फैलाता रहता है।

आज भी जब हम पचास-साठ साल पुराने लेखकों को पढ़ते हैं, तो लेखक का व्यक्तित्व हमारे समाने सजीव हो उठता है। हम उनकी पुस्तकों से लाभांवित होते हैं। वे सब अपनी  पुस्तकों के माध्यम से अमर हैं। इसलिए पुस्तकों को प्रकाशित करवाना अति आवश्यक है।

 

११.  यदि आपको मौंका मिले तो आप साहित्यिक क्षेत्र में क्या बदलाव लाना चाहेंगी ?

जी, जहाँ तक साहित्य में बदलाव की बात है तो “जिसमें हित नहीं, वो साहित्य ही नहीं”। पर आज साहित्य मंच की वस्तु बन कर रह गया है। गुप्त जी तो बहुत पहले ही लिख गए हैं।

केवल मनोरंजन न कवि का

कर्म होना चाहिए।

उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए।

साहित्य कोई हंसी मजाक की वस्तु नहीं है, कोई खिलवाड़ नहीं है। साहित्य समाज का यथार्थ होने के साथ-साथ सुधार भी है।

साहित्यकार के कंधों पर समाज निर्माण की जिम्मेदारी होती है।

हम जैसा परोसेंगे, समाज वैसा ही लेगा इसलिए साहित्यकार को बहुत सोच समझकर अपनी लेखनी का उपयोग करना चाहिए।

 

१२. महिला के किस रूप को आप सर्वश्रेष्ठ मानती हैं और क्यों?

जी, यह प्रश्न तो बिल्कुल इसी तरह का है कि भगवान के किस रूप को आप श्रेष्ठ मानते हैं। महिला हर रूप में श्रेष्ठ है। छोटी सी कन्या के रूप में वह आशीर्वाद देती है। बहन के रूप में भाई की रक्षा के लिए तैयार रहती है। बेटी के रूप में पूरे परिवार की रक्षा करती है। पत्नी के रूप पूरे परिवार में खुशियों के दीप जलाती है और एक माँ के रूप अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देती है। अब आप ही निश्चित कर लीजिए कि महिला का कौन सा रूप सर्व श्रेष्ठ है?

 

१३. आप अपनी सफलता का श्रेय किसे देना चाहेंगी ?

जी, मेरी सफलता का श्रेय मेरे परिवार के साथ-साथ मेरी दृढ़ इच्छाशक्ति और मेरी कर्मठता को जाता है।

 

१४. नए लेखकों को क्या सुझाव देंगी आप ?

नए लेखकों से मैं यही कहना चाहती हूँ कि इस प्रक्रिया से सतत् जुड़े रहें। लेखन एक तपस्या है। खूब लिखें,अच्छा लिखें और कभी भी इससे संतुष्ट न हो। अच्छे लेखन की भूख कभी भी तृप्त न हो। अपने लेखन से परिवार, समाज, देश व विश्व का कल्याण करें।

 

संपर्क :

निशा नंदिनी भारतीय
पति श्री एल.पी गुप्ता
आर.के.विला, बाँसबाड़ी, हिजीगुड़ी, गली- ज्ञानपीठ स्कूल
तिनसुकिया – 786192 असम
मोबाइल- 9435533394, 9954367780
ई-मेल आईडी : [email protected]