Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the limit-login-attempts-reloaded domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /var/www/wp-includes/functions.php on line 6114

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the square domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /var/www/wp-includes/functions.php on line 6114
पुस्तक समीक्षा / आत्मकथ्य – पंचमढ़ी की खोज – श्री सुरेश पटवा - साहित्य एवं कला विमर्श पुस्तक समीक्षा / आत्मकथ्य – पंचमढ़ी की खोज – श्री सुरेश पटवा - साहित्य एवं कला विमर्श

पुस्तक समीक्षा / आत्मकथ्य – पंचमढ़ी की खोज – श्री सुरेश पटवा

आत्मकथ्य – पंचमढ़ी की खोज – श्री सुरेश पटवा 

(‘पंचमढ़ी की खोज’  श्री सुरेश पटवा की प्रसिद्ध पुस्तकों में से एक है। आपका जन्म देनवा नदी के किनारे उनके नाना के गाँव ढाना, मटक़ुली में हुआ था। उनका बचपन सतपुड़ा की गोद में बसे सोहागपुर में बीता। प्रकृति से विशेष लगाव के कारण जल, जंगल और ज़मीन से उनका नज़दीकी रिश्ता रहा है। पंचमढ़ी की खोज के प्रयास स्वरूप जो किताबी और वास्तविक अनुभव हुआ उसे आपके साथ बाँटना एक सुखद अनुभूति है। 

श्री सुरेश पटवा, ज़िंदगी की कठिन पाठशाला में दीक्षित हैं। मेहनत मज़दूरी करते हुए पढ़ाई करके सागर विश्वविद्यालय से बी.काम. 1973 परीक्षा में स्वर्ण पदक विजेता रहे हैं और कुश्ती में विश्व विद्यालय स्तरीय चैम्पीयन रहे हैं। भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत सहायक महाप्रबंधक हैं, पठन-पाठन और पर्यटन के शौक़ीन हैं। वर्तमान में वे भोपाल में निवास करते हैं। आप अभी अपनी नई पुस्तक ‘पलक गाथा’ पर काम कर रहे हैं। प्रस्तुत है उनकी पुस्तक पंचमढ़ी की खोज पर उनका आत्मकथ्य।)

मध्यप्रदेश के होशंगाबाद ज़िला की सोहागपुर तहसील में 1860 से 1870 के दशक में दो अत्यंत महत्वपूर्ण घटनाएँ घटित हुईं जिन्होंने न सर्फ़ तहसील के जीवन को पूरी तरफ़ बदल कर रख दिया अपितु एक नया शहर पिपरिया अस्तित्व में आ गया, जिसे पंचमढ़ी के प्रवेश-द्वार और प्रोटीन से भरपूर तुअर दाल के लिए पूरे देश में जाना जाता  है। अंग्रेज़ों के सोहागपुर को रेल का ठिकाना बनाने से बस्ती के बाशिंदों को नई अंग्रेज़ी शिक्षा के द्वार खुल गए 50 किलोमीटर के घेरे से लोग पढ़ने-लिखने वहाँ आने लगे। इलाक़े में  यह उलाहना पूर्ण कहावत चल पड़ी कि “पढ़े न लिखे सोहागपुर रहते हैं”, जिसके जवाब में एक नई कहावत बाजु के नरसिंघपुर जिले में बन गई कि “पढ़ौ न लिखो होय, मनो नरसिंघपुरिया होय”। यह प्रतिस्पर्धा निरंतर है।

पहली घटना थी, सोहागपुर से इटारसी-जबलपुर खंड की रेल लाइन का बिछाना जिसके लिए लकड़ी सिलीपाट, लाल मुरम, पलकमती की बारीक रेत और सस्ता श्रम सोहागपुर की बस्ती ने उपलब्ध कराया। दूसरी घटना थी, जबलपुर को सेंट्रल प्राविन्स की राजधानी बनाकर होशंगाबाद को कमिशनरी और ज़िला मुख्यालय बनाना एवं होशंगाबाद जिले का  सीमांकन और फ़ौजी ठिकाने हेतु कैप्टन जेम्ज़ फ़ॉर्सायथ द्वारा खेतिहर ज़मीन की पहचान, कोयला के भण्डारों का पता लगाना व सुरक्षित अभयारण्य की स्थापना हेतु पंचमढ़ी की खोज।

जबलपुर से पंचमढ़ी तक की इस यात्रा में वन्य-जीवन, आदिवासी संस्कृति, सतपुड़ा की वनस्पति, आदम खोर का शिकार और क़दम-क़दम पर जोखिम के रोमांच है।

पंचमढ़ी की खोज से ……..

जेम्स फ़ॉर्सायथ ने जनवरी 1862 में जब पंचमढ़ी की तरफ अपनी यात्रा शुरु की तब तक रेल लाइन डालने के लिए बावई से बागरा तक आकर, रेल लाइन के किनारे-किनारे गिट्टी, रेत, सिलिपाट मजदूर मशीन और दूसरी अन्य चीजें ले जाने के लिए लाल मुरम डालकर एक कच्ची सड़क नरसिंघपुर तक बन गई थी। फ़ॉर्सायथ के पास एक बहुत होशियार और समझदार ऊँट था, जिसे उसने बुंदेलखंड में विद्रोहियों और ठगों की सफाई की मुहिम के दौरान पकडा था। वह ऊँट लावारिस घूम रहा था संभवत: उसके मालिक को ठगों ने ठिकाने लगा दिया हो और माल लूटकर ऊँट छोड दिया होगा। उस ऊँट की एक अजीब सी आदत थी कि वह कुछ दिनों के लिए फ़ॉर्सायथ को छोडकर जंगल की तरफ की तरफ ऊंटनी की खोज में निकल जाता था और निपट सुलझ कर पूँछ हिलाते हुए वापस मालिक के पास आ जाता था। तब उसकी आँखो और शरीर में एक चमक होती थी। प्रतिवर्ष अक्टूबर से दिसम्बर तक वह ऐसा ही करता था इसलिए फ़ॉर्सायथ ने उसका नाम ‘जंगली’ रख दिया था। जब वह जंगल से वापस आता तो जुगाली में मुँह चलाते हुए एकटक फ़ॉर्सायथ को देखता रहता था मानो कह रहा हो हमको तो मेम मिल गई पर तुम्हारी ऊँटनी कहाँ है।

आप अमेरिका का नक्शा देखें। उसमें उनके 52 राज्य की सीमाएँ आयताकार हैं। राज्य बनाने के लिए 1780 के आसपास सीथी-सीधी रेखाएँ खींच दी गईं थीं क्योकि तब तक ऊबड़-खाबड़ जमीन, कहीं-समतल, कहीं-पहाड़, कहीं-नदी, कहीं घाटी और कहीं खाइयाँ नापने के सूत्र विकसित नहीं हुए थे । ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज और ग्लासगो विश्वविद्यालयों में पाइथागोरस के रेखागणित और बीजगणित के सूत्रों और सिद्धांतों पर फार्मूले विकसित किए गए जिनसे उन्नीसवीं सदी में सबसे पहले हिंदुस्तान को नापा गया। उस समय इंग्लैंड के लिए हिंदुस्तान सबसे महत्वपूर्ण था क्योंकि अमेरिका हाथ से निकल चुका था और आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिणी अफ्रीका और कनाडा पूरी तरह हाथ में नहीं आए थे। ग्रीक के एरेटोस्थेनेस ने पृथ्वी के व्यास की गणना पता करने के लिए सूत्रों का प्रयोग किया था तदनुसार इंग्लैंड के भूगर्भशास्त्रियों ने पृथ्वी के केंद्र से सतह की दूरी 6371  किलोमीटर आँकी थी। अग्रेजों ने हिदुस्तान को नापने के लिए Great Trigonometric Survey नाम से एक प्रोजेक्ट 1802 में शुरू की, जिसमें भारत को कई ट्राइएंगल याने तिकोने में बाँटा गया। उन ट्राइएंगल का क्षेत्रफल निकाल कर सूबे और फिर देश का क्षेत्रफल आँका गया था।

प्रोजेक्ट के मुखिया थे विलियम लामटन, उनके सहायक थे जॉर्ज एवरेस्ट और उनके सहायक एंड्रू स्कॉट वॉ थे। विलियम 1823 में सिरोंज, मध्यप्रदेश तक का सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया बनाया गया जिसने 1861 तक माउंट एवरेस्ट को नाप दिया, उसे मलेरिया हो गया वह इंग्लैंड लौट गया। लेकिन काम पूरा न होने की वज़ह से प्रोजेक्ट एंड्रू स्कॉट वॉ को सौंपी गई जिसने 1871 में काम पूरा करके भारत का पहला अधिकृत नक्शा बना कर दिया। उन्हीं एंड्रू स्कॉट वॉ की ब्रिटिश आर्टिलरी में एक कैप्टन थे जेम्स फ़ॉर्सायथ जिन्होने पंचमढ़ी को खोज निकाला और आज की पंचमढ़ी की नींव रखी थी।

हिंदुस्तान के सर्वे के दौरान नर्मदा घाटी को मोटा-मोटा नाप में तो ले लिया गया था परंतु नाप के ट्राइएंगल हरदा से नर्मदा पार करके हँडिया, सिहोर, श्यामपुर दोराहा, विदिशा से सिरोंज शिवपुरी ग्वालियर होते हुए आगरा, दिल्ली तरफ निकल गए थे। दूसरी तरफ नागपूर से गोंदिया, राजनांदगांव, दुर्ग, रायपुर और बिलासपुर होते हुए बिहार होकर गोरखपुर निकल गए थे। इसी बीच 1857 का संग्राम शुरू हो क्या तो काम रुक गया, वह पुनः 1861 में जाकर शुरू हुआ। सवाल उठना लाजिमी है, तो फिर अकबर के जमाने में टोडरमल ने क्या किया था। उसने सिर्फ कृषि जोत योग्य ज़मीनों को गुणवत्ता के हिसाब से नाप कर लगान तय किया था। जिलों और नगर की सीमाएं नदी नालों के अनुसार तय होतीं थीं जो आज भी देखी जा सकती हैं। जैसे तवा नदी के इस तरफ सोहागपुर तहसील और उस तरफ होशंगाबाद तहसील या नर्मदा के दक्षिण में नरसिंहपुर या होशंगाबाद जिले और उत्तर में सागर और रायसेन जिले। मुगल काल तक हिंदुस्तान के वैज्ञानिक गणना आधारित नक्शे नहीं बने थे।

© सुरेश पटवा