इंतज़ार (कहानी संग्रह)

लेखिका : सुश्री मालती मिश्रा

प्रकाशन : समदर्शी प्रकाशन, हरियाणा

संस्करण : प्रथम, जून – 2018

मूल्य : रुपये 175/- मात्र

(लेखक मित्रों के सुझावों के अनुरूप यह एक नवीन प्रयास है। इसमें लेखक मित्रों की चुनिन्दा पुस्तकों की समीक्षा/आत्मकथ्य प्रकाशित करना प्रारम्भ कर रहे हैं। इस कड़ी में हम सर्वप्रथम सुश्री मालती मिश्रा जी के कथा संग्रह इंतज़ार की समीक्षा प्रस्तुत कर रहे हैं। समीक्षा श्री अवधेश कुमार ‘अवध’ जी ने लिखी है। हम कल इस कथा संग्रह की एक चुनिन्दा कहानी ‘इंतजार का सिलसिला’ प्रकाशित करेंगे। 

अवधेश कुमार ‘अवध’

जब से मानव ने कुटुम्ब में रहना सीखा तब से परिजनों में छोटे – बड़े और बच्चे – वृद्ध की भावना आई और साथ ही आई प्राय: बड़ों द्वारा छोटों को कहानियाँ सुनाने का सिलसिला। प्रकारान्तर में वही कहानियाँ चमत्कारों, अप्सराओं और अदृश्य शक्तियों से होती हुईं धरातल पर उतरीं जिनमें समाज का प्रतिबिम्ब देखा जा सकता है और प्रेरित होकर समाज को उचित दिशा भी दिया जा सकता है।

लेखिका सुश्री मालती मिश्रा ‘अन्तर्ध्वनि’ काव्य संग्रह के उपरान्त 13 कहानियों का संग्रह  ‘इंतज़ार’ लेकर कथा की दुनियाँ में पदार्पण कर रही हैं। इनकी समग्र कहानियाँ युवा असंतोष या दूसरे शब्दों में कहें तो युवा उलझन के परित: घूमती हैं जिनमें कभी युवा पीढ़ी इंतज़ार करती है तो कभी युवा पीढ़ी का इंतज़ार होता है। कोई कहानी इंतज़ार से शुरु होकर मिलन पर पूर्ण होती है तो किसी का मिलन अन्तहीन इंतज़ार में दम तोड़ देता है। इंतज़ार के कई रूपों को लेखिका ने कथावस्तु के रूप में पल्लवित किया है। कभी अभिभावक अपनी युवा संतान का इंतज़ार कर रहा होता है तो कहीं प्रेमी जोड़ा एक – दूजे का। तकरीबन सभी कहानियाँ दो पीढ़ियों के ताने – बाने से जुड़ी हैं। कहीं बच्चे और युवा हैं तो कहीं युवा और वृद्ध अर्थात् दो पीढ़ियों के अन्तराल का द्वन्द है इनमें। जहाँ एक ओर अतिरेक संस्कार की भट्ठी में अस्तित्व को जलते देखा गया है तो दूसरी ओर स्वच्छंद परिवेश में संस्कार को दम तोड़ते हुए भी। इंतज़ार के पात्र एक हाथ से व्यष्टि को थामें हुए हैं तो दूसरे हाथ से समष्टि को छूने की चेष्टा करते हैं। विवाह एक विवशता के रूप में भी परिलक्षित है जिसे तोड़कर पति/पत्नी की बजाय प्रेमी/प्रेमिका की भावना प्रबल हो जाती है। लेखिका के इंतज़ार की सारी कहानियाँ आज के परिवेश की हैं जिनका कथानक दहेज, बालविवाह, रिश्तों में भ्रम, ज़िंदगी की कश्मकश, अत्यधिक महत्वाकांक्षा, कैशोर्य आकर्षण, परम्परागत वैवाहिक संस्था में कमजोरी, प्रेम विवाह का अनिश्चित भविष्य, अशिक्षा, जातिवाद और अन्तहीन संघर्ष को अपने आँचल में समेटे हुए है। कहानियों का ताना – बाना लेखिका ने इस प्रकार बुना है कि बिल्कुल सच्ची लगती हैं। कथोपकथन को पात्रानुरूप रखने में सफलता मिली है।

‘इंतज़ार एक सिलसिला’ कहानी में वृद्ध पिता अपने उस पुत्र का इंतज़ार करते हुए प्राण त्याग देता है जो पहले ही परलोकवासी हो गया है। किशोरवय का प्यार एक छोटे से भ्रम के कारण ज़ुदा हो जाता है और फिर मिलता है प्रौढ़ावस्था में भ्रम से पर्दा हटने के बाद। परिधि के प्यार में विरह – मिलन पर आधारित कहानी है ‘शिकवे – गिले’। परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है जिसको जीवन्त करती है कहानी ‘परिवर्तन’। ‘वापसी की ओर’ कहानी समाज की उस घृणित मानसिकता का परिणाम है जहाँ दो घरों के हमउम्र जवान होते बच्चों की नज़दीकी को बिना सोचे – समझे अनैतिकत सम्बंध और चरित्र पतन जैसे गंदे आरोपों से तोड़ दिया जाता है। ‘दासता के भाव’ उस स्कूली छात्रा की कहानी है जो खुद खड़े होकर आवारा लड़कों द्वारा पालित दासता को चुनौती देती है और धीरे – धीरे सबको जाग्रत भी करने में सफल हो जाती है। पति – पत्नी के मध्य जीवन की कश्मकश से घबराकर लिए गए फैसले बाद में स्वयं को ही कच्चे महसूस होने लगते हैं और उन्हें बदलना भी पड़ता है, इस कथानक पर आधारित है कहानी ‘फैसले’। दो सहेलियाँ मीरा और मुन्नी आर्थिक और सामाजिक विभेद को मिटाती हैं किन्तु एक द्वारा स्वयं की गलतियों को दूसरे पर आरोपित करने से पुन: विभेद सशक्त हो जाता है, इसको जीवन्त करती है कहानी ‘मीरा’। बालविवाह को न स्वीकारते हुए पलायन करने और बाद में पुन: घर से रिश्ता जोड़ते हुए एक नारी की स्थिति ‘अपराध….’ कहानी की विषयवस्तु है। संयुक्त परिवार में प्राय: बहू को यंत्रणा झेलनी पड़ती है जिसका परिणाम अक्सर रिश्तों में खटास या विद्रोह बनकर उभरता है, इसी प्रसंग के ताने – बाने पर रची गई है कहानी ‘क़सम….’। ‘संदूक में बंद रिश्ते’ राखी के कमजोर पड़ने की कहानी है जिसमें एक बहन के लिए भाई उसकी अपेक्षा के विपरीत हो जाता है। बदलते जमाने की महिला न सिर्फ एक लाचार लड़की की इज़्जत की रक्षा करती है बल्कि अपने चरित्रहीन पति को जेल तक भिजवाती है। ऐसी ही सजग और गौरवशालिनी महिला की कहानी है ‘शराफ़त के नक़ाब’। शहरी साज़िश में एक युवती अनायास फँस जाती है और वर्षों बाद उसकी ‘अधूरी कहानी’ पूर्णता को प्राप्त होती है। ‘मेरी दादी’ एक दादी – पोती के लगाव पर आधारित कहानी है। पोती की शादी और मायके में बँटवारे के उपरान्त दादी – पोती के रिश्ते की अहमियत परिजनों के लिए मात्र औपचारिकता बनकर रह जाती है। ‘अपराध….’ कहानी में नायिका ‘धरा’ और रिक्शे वाले काका के बीच कथोपकथन में कानपुर के कस्बे की आबोहवा सामने अपस्थित दिखती है। ‘इंतज़ार’ कहानी संग्रह की समस्त कहानियाँ हमारे आज के समाज की दर्पण हैं। किशोर- युवा पीढ़ी की संवेदनात्मक सोच, असंतोष, त्वरित फैसले और परिणाम पर आधारित है इंतज़ार। इसके समस्त पात्रों में पाठक स्वयं को या स्वयं के आस – पास के लोगों को देख सकता है, पहचान सकता है, अपने घर या पड़ोस में घटित मान सकता है। लेखिका ने किसी पात्र विशेष के साथ पक्षपात रहित रहने का सर्वदा प्रयास किया है। हर वय और लिंग के पात्रों को यथोचित मनोभाव व परिवेश के साथ हाज़िर किया है।

हम आश्वासन ही नहीं अपितु विश्वास दिलाना चाहते हैं कि सुश्री मालती मिश्रा जी का ‘इंतज़ार’ आपके हाथों में अपना ही लगेगा। लगेगा कि समस्त कहानियों में मुख्य अथवा गौड़ पात्र के रूप में आप स्वयं है।

अवधेश कुमार ‘अवध’

समीक्षक, संपादक, साहित्यकार व अभियंता

मो० नं० 8787573644

[email protected]

ग्राम व पोस्ट – मैढ़ी (धरौली रोड)

जिला – चन्दौली

उत्तर प्रदेश – 232104

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मनोरमा जैन पाखी

बेहतरीन समीक्षा आदरणीय ।