मराठी साहित्य – कविता – ☆ आई आंबाबाई ☆ – श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आज  प्रस्तुत है  नवरात्रि पर विशेष कविता  – “आई आंबाबाई। )

 

☆ आई आंबाबाई  ☆

 

अगं आई आंबाबाई
तुझा घालीन गोंधळ ।
डफ तुंणतुण्यासवे
भक्त वाजवी संबळ।
सडा कुंकवाचा घालू
नित्य आईच्या मंदिरी।
धूप दीप कापूराचा
गंध दाटला अंबरी।
दही दुध साखरेत
केळी नि मधाची  धार।
ओटी लिंबू  नारळाची
संगे साडी बुट्टेदार।
धावा ऐकुनिया माझा
 आई संकटी धावली।
निज सौख्य देऊनिया
धरी कृपेची सावली।
माळ कवड्यांची सांगे
मोल माझ्या जीवनाचे।
परडीत मागते मी
तुज दान कुंकवाचे।

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105