श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे
(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है। आज प्रस्तुत है श्रीमती उर्मिला जी की वर्षा ऋतू पर आधारित रचना “वसुंधरा ”। उनकी मनोभावनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय है। ऐसे सामाजिक / धार्मिक /पारिवारिक साहित्य की रचना करने वाली श्रीमती उर्मिला जी की लेखनी को सादर नमन। )
☆ केल्याने होतं आहे रे # 38 ☆
आला पाऊस आला पाऊस !
जलधारांच्या माळा घेऊन !!
भिजली धरणी जलधारांनी !
हरित तृणांचे लेणे लेऊनी !!
सजली जणू नववधू लाजरी !
हिरवा रेशमी शालू लेऊनी !
दिसते किती छान गोजिरी !!
ढगाआडुनी सखा डोकवी !
दिसते कशी मज सखी साजणी !
पाहुनी ही सुंदरा वसुंधरा !
सखा झाला कावरा बावरा !!
सखा झाला कावरा बावरा!!
©️®️उर्मिला इंगळे
सातारा
दिनांक:१७-६-२०
!!श्रीकृष्णार्पणमस्तु!!
अच्छी रचना